इस पार्टी को क्यों वोट दें?

इस पार्टी को क्यों वोट दें?
इनके तो साथी बजरंग दल और विहिप वाले हैं

मेरे दोस्त मुझसे अक्सर सवाल करते रहते हैं। सवाल करना अच्छे दोस्तों की निशानी है। तो साहब आज उन्होंने सवाल दाग दिया कि आखिर भाजपा को क्यों वोट दिया जाए? क्या इसलिए वोट दें कि ये सत्ता में आएं और बजरंग दल को हुड़दंग करने की खुली छूट मिल जाए।
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बात तो सही है। हमारे बजरंगी भाई कभी-कभी ऐसा करते तो हैं। इसके लिए मैं यह दलील भी नहीं दूंगा कि वे किसी क्रिया की स्वभाविक प्रतिक्रिया के तौर पर ऐसा करते हैं। कोई दलील दिए बगैर मैं मानता हूं कि वे गलत करते हैं।
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लेकिन इससे पहले कि आप किसी निष्कर्ष पर पहुंचे, मैं आपका ध्यान देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित और पूज्य परिवार की ऒर खींचना चाहूंगा। डरिए नहीं, मैं नेहरू गांधी परिवार की बात नहीं कर रहा हूं। उनकी भी बात करेंगे लेकिन बाद में। यहां मैं भगवान शिव-पार्वती के परिवार की बात कर रहा हूं।
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अपने भोले बाबा औघड़दानी हैं। भूत-पिशाच का साथ पसंद है उन्हें। वेश-भूषा भी कुछ-कुछ वैसी ही बनाए रखते हैं। माता पार्वती अत्यधिक सुंदर हैं (कालिदास ने उनके रूप का वर्णन भी किया है), सौम्य हैं। सोचिए कैसे रहते होंगे दोनों साथ में। शिव जी का वाहन बैल (नंदी) है, जो पार्वती जी के वाहन सिंह का प्रिय भोजन है। शिव जी को सांप प्रिय हैं तो उनके पुत्र कार्तिकेय के वाहन मोर को सांप के अलावा और कुछ भी खाना पसंद ही नहीं है। और तो और सांप का प्रिय भोजन तो गणेश जी का वाहन चूहा है। कैसे पटती होगी उनके परिवार में। तो सभी एक दूसरे से नाता खत्म क्यों नहीं कर लेते हैं। इसलिए क्योंकि स्वभाव और रुचियों में चाहें जितनी भी विभिन्नता क्यों न हो, आखिर हैं तो एक परिवार का हिस्सा ही न।
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हमें गर्व है कि हम देश के सबसे बड़े परिवार का हिस्सा हैं। और सिर्फ बजरंग दल या विश्व हिन्दू परिषद ही क्यों, हमारे परिवार के ५६ से अधिक अनुसांगिक संगठन हैं। मुसलमान भाईयों के बीच काम करने के लिए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच है। वनवासी कल्याण आश्रम वंचितों और आदिवासियों के बीच काम करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा संगठन है। अगर निरपेक्ष रूप से शोध किया जाए तो पता चल जाएगा कि २१ सदी के भारत की बुनियाद विद्या भारती ‍द्वारा चलाए जाने वाले शिशु मंदिरों और विद्या मंदिरों में रखी गई है। विद्या भारती दुनिया की सबसे बड़ी शैक्षणिक संस्था है और २०,००० से अधिक स्कूलों का संचालन करती है। मजदूरों के क्षेत्र में हमारे परिवार के सदस्य भारतीय मजदूर संघ के नाम से देश का सबसे बड़ा संगठन चलाते हैं।
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महानगरों में एकाकी जीवन जीने वालों से पूछिए, संयुक्त परिवार कितना याद आता है। वो बनारस वाली चाची जो दिन भर इधर की बात उधर करने में ही लगी रहती थीं और नासिक वाले फूफा, जिनका गुस्सा तो बस नाक पर ही रहता था। लेकिन सभी की याद आती है, सभी के लिए परिवार में जगह है। सिर्फ इसलिए कि फूफा जी को गुस्सा ज्यादा आता है, हम उनसे नाता तो नहीं तोड़ सकते हैं। हां, अगर वे कुछ गलत करते हैं तो उसका फल तो उन्हें भोगना ही होगा। लेकिन इसके लिए पूरे परिवार का सामाजिक बहिष्कार करना सही है क्या?
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प्रत्येक व्यक्ति या संगठन अपनी नियति खुद तय करता है। और फिर हम यह क्यों मान लेते हैं कि सभी के विचार एक जैसे हो जाएंगे। स्वभाव के अनुसार कोई उग्र होता है तो कोई नम्र। जहां दस बर्तन होंगे वहां शोर तो होगा ही। खंभे एकदम शांत खड़े रहते हैं। जैसे हमारी कांग्रेस पार्टी। यहां गांधी परिवार को छोड़कर सभी खंभे हैं। शांत और निर्जीव। इनकी विचार शक्ति मर चुकी है।
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हमारे यहां ऐसा नहीं है। हमारे चमन में सौ फूल खिलते हैं और सौ विचारों में होड़ होती है। हमारा परिवार और वंश परंपरा सबसे महान है लेकिन हम वंशवाद की राजनीति नहीं करते हैं। क्या आप नहीं चाहते हैं कि आपका मूल्याकंन सिर्फ आपके काम के आधार पर किया जाए न कि इस बात के आधार पर कि आप किस परिवार के साथ संबंध रखते हैं।
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भाजपा मूल्यांकन भी उसके काम के आधार पर कीजिए, न कि इस आधार पर कि मैं क्या कह रहा हूं या कांग्रेस या मीडिया वाले क्या कह रहे हैं। अपने दिमाग की सुनिए। और हां, थोड़ा सा दिल की भी सुनिए और फिर फैसला कीजिये।