मजबूत देश भाता नहीं, भारतीयता से है कोई नाता नहीं

इसके इरादे हैं नेक नहीं
मजबूत देश इसको भाता नहीं
भारतीयता से है इसका कोई नाता नहीं
ये है दस जनपथ की बहू-2

कांग्रेस में लोकतंत्र को खाती है
पीएम को कठपुलती की तरह नचाती है
और बेटे को अपने युवराज बताती है
ये है दस जनपथ की बहू-2
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झूठे सपने दिखाती है
षड़यंत्र रचाती है
भाई को भाई से लड़ाती है
ये है दस जनपथ की बहू-2

मेरे एक मित्र द्वारा लिखी गई यह कविता शायद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की ऒर संकेत करती है। फिर ध्यान आया कि कविता काफी गुस्से में लिखी गई है और इसलिए कभी-कभी शालीनता की दहलीज को लांघती नजर आती है। सोनिया जी इस देश की बहू हैं और इस नाते सम्मान की हकदार हैं। उन्होंने यदा-कदा त्याग का प्रदर्शन भी किया है। फिर आखिर ऐसी कौन सी वजह है, जिसके कारण उनके बारे में ऐसे कड़े शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ा।
आजकल फिल्म अभिनेता आमिर खान का एक विग्यापन काफी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है, जिसमें वो सवाल करते हैं कि जितना ध्यान और वक्त हम सब्जी चुनने में लगाते हैं, क्या उसका आधा भी हम देश के नेता चुनने में लगाते हैं? बात तो सही है। फिर तो हमें पता होना चाहिए कि सोनिया गांधी पर ये जो आरोप लगाए जाते हैं, वो कितने सच्चे हैं। चलिए पहले आपको कुछ वीडियो दिखाते हैं। इन वीडियो में जनता पार्टी के अध्य‌क्ष सुब्रमण्यम स्वामी आपसे मुखातिब हैं। स्वामी हावर्ड यूनीवर्सिटी और आईआईटी से जुड़े रहे हैं। उन्होंने इमरजेंसी के दौरान तगड़ा संघर्ष किया है और चीन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के हिमायती रहे हैं।



अब कुछ अपनी बात भी कह देता हूं। सोनिया जी ने आखिर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री क्यों चुना। मनमोहन जी योग्य हैं, ईमानदार हैं, लेकिन क्या सिर्फ इसलिए सोनिया गांधी ने उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया। मनमोहन सिंह को इसलिए प्रधानमंत्री बनाया गया कि वो राजनीतिक रूप से कमजोर हैं और हार्मलेस हैं। अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए एक कमजोर व्यक्ति को देश का प्रधानमंत्री बना दिया। क्या इसी को त्याग कहते हैं?
कांग्रेस पार्टी के नेताऒं को देखिए। हमेशा सोनिया जी की माला जपते हैं। किसी राज्य में कांग्रेस जीत गई तो मैंडम फैक्टर, राहुल फैक्टर की जयजयकार होने लगती है। और अगर पार्टी हार गई तो, सारा दोष राज्य इकाई के ऊपर मढ़ दो। ऐसा कहीं होता है क्या? अगर मैडम इतनी ही अच्छी हैं तो खुद ऐसी राजमाता बनकर क्यों बैठी हैं, जिसके खिलाफ कोई कुछ नहीं बोल सकता है। सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र को खा चुकी हैं और पार्टी के दूसरे नेताऒं को खंभा बनाकर छोड़ दिया है। बेजान और विचार शून्य।
सोनिया गांधी को इतनी बड़ी कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी के अलावा कोई दूसरा नेता नहीं मिला, जिसे पार्टी का युवराज घोषित किया जा सके। इस बार जब दाल गलती नहीं दिखी तो बेचारे मनमोहन सिंह को आगे कर दिया। यकीन जानिए प्रधानमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह के नाम की घोषणा का अर्थ ही है कि कांग्रेस मान चुकी है कि वह चुनाव हार चुकी है।
इसके बावजूद भी अगर आप मानते हैं कि सोनिया गांधी बड़ी अच्छी हैं तो मानते रहिए। लेकिन, जब देश बिकने की कगार पर पहुंच जाएगा तो मुझसे आकर न कहिएगा। मैं खुद आपके पास आकर कहूंगा कि 'अभी भी देर नहीं हुई है। वोट देना का अधिकार अभी भी आपके पास है। सच्चे को चुनिए, अच्छे को चुनिए।'