'राम के नाम पर सत्ता में आए और राम को ही भूल गए।'

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लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं कि आखिर भाजपा जैसी पार्टी को वोट क्यों दिया जाए?
'क्यों भई, क्या बुराई है इस पार्टी में। भले लोग हैं। ईमानदार हैं और इनके पास भारत को एक विकसित देश बनाने के लिए जरूरी दूरदृष्टि हैं।'
इसके बाद वे बोतल से अयोध्या का जिन्न निकाल लेते हैं।
'अरे यह वही पार्टी है जिसने अयोध्या जैसा कांड करवा दिया।'
'राम के नाम पर सत्ता में आए और राम को ही भूल गए।'
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ये सवाल मुझसे कई बार किए गए हैं और जवाब खोजने के लिए मैंने खुद से भी बार-बार सवाल किए हैं। कई सवाल हैं। अयोध्या में क्या हुआ था? क्या होना चाहिए था जो नहीं हुआ?, जो भी हुआ हो उसका उत्तरदायी कौन है? और क्या भाजपा राम को भूल गई है।
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हमने तो कभी आस्था पर सवाल नहीं उठाया
राम कोटि कोटि भारतीयों की आस्था के प्रतीक हैं और उनकी नगरी है अयोध्या। अयोध्या में उनका जन्म हुआ था। ऐसा किसी इतिहासकार ने नहीं बताया। हमारी आस्था कहती है कि अयोध्या में जन्म हुआ। अगला सवाल था कि कहां हुआ? तो फिर आस्था ने ही बताया कि भई यहां, इस जगह हुआ था प्रभु श्रीराम का जन्म। कुछ दूसरे लोग भी थे, उन्होंने सवाल उठा दिया कि क्या गारंटी है कि राम का जन्म हुआ था। गारंटी! किस बात की? हमने तो कभी सवाल नहीं उठा कि चरार-ए-शरीफ में रखा बाल किसका है। आपने कहा और हमने मान लिया। धर्म और आस्था तर्क-वितर्क के विषय नहीं हैं।
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मंदिर के स्थान पर मस्जिद
हमारे यहां स्थान का बड़ा महत्व है। राम के जन्म स्थान का भी था। तो विचार आया कि इस जगह पर मर्यादापुरुषोत्तम राम का एक भव्य मंदिर बनाना चाहिए। लेकिन इसमें एक समस्या थी। जिस स्थान पर भव्य मंदिर बनाने की बात हो रही थी वहां तो पहले से एक मस्जिदनुमा ढांचा खड़ा था। अगर आपको ढांचा शब्द पर आपत्ति हो तो मस्जिद कह लीजिए। साथ में मंदिर भी था और पूजा भी होती थी।
इतिहासकारों के मुताबिक यहां पहले एक भव्य मंदिर था जिसे बाबर के सेनापति मीर बाकी ने ध्वस्त कर मस्जिद बना दी। इस घटना का जिक्र इनसाईक्लोपीडिया आफ ब्रिटैनिका में भी हैं। अगर वाकई मंदिर को तोड़ कर उसकी जगह मस्जिद बनाई गई है तो देश के मुसलमानों का चाहिए था कि वह स्थान स्वेच्छा से हिंदुऒं को सौंप देते। और वैसे भी वहां न तो नमाज पढ़ी जाती थी और न ही उनकी आस्था उन्हें उस स्थान से जोड़ती थी। लेकिन फिर गारंटी का सवाल उठाया गया। इस बात का क्या सबूत है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनी। भई, बात तो सही है। हमने तो देखा नहीं है। लेकिन जरा सोचिए क्या छुआछूत की बीमारी से ग्रस्त हिंदू समाज किसी दूसरे के धर्म स्थान पर पूजा कर सकता है। और वैसे भी एक राम जन्मभूमि ही तो है नहीं। काशी विश्वनाथ और मथुरा के तो ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं। भोलेबाबा के मंदिर और कृष्ण जन्मभूमि के साथ मस्जिद का निर्माण किसी सौहार्द्रपूर्ण माहौल में तो हुआ नहीं होगा। उत्तर भारत में बलात निर्माण का एक इतिहास रहा है।
खैर, इस देश के मुसलमानों को हठ करने की पुरानी आदत रही है। वंदे मातरम् नहीं गाएंगे, सरस्वती वंदना नहीं करेंगे, बैठे बिठाए तुगलकी फरमान जारी करते रहेंगे। और इतना सब कुछ उस धर्म का नाम लेकर करेंगे, जिसके नाम पर पहले ही देश को दो हिस्सों में बांटा जा चुका है।
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अयोध्या आन्दोलन और भाजपा
इसबीच १९८७ के बाद से अयोध्या का मुद्दा एक बार फिर गरमाने लगा। भारतीय जनता पार्टी ने हिंदुस्तान की अवाम की आवाज को समझा और इसे एक राष्ट्रीय आन्दोलन का स्वरूप देने में मददगार बनी। आडवाणी जी ने १९९० में राम रथ यात्रा की शुरुआत की। इस समय भाजपा १० वर्ष की तरुण पार्टी थी। प्रखर और कुछ हद तक उग्र राष्ट्रवादी पार्टी। तो साहब नारा दिया गया कि सौगंध राम की खाते हैं हम मंदिर वहीं बनाएंगे। लेकिन हमने कभी यह नहीं कहा कि मस्जिद को बलात तोड़कर बनाएंगे। आन्दोलन अपने चरम पर पहुंचा और उसके बाद क्या हुआ सभी को पता है। मीर बाकी की स्थापत्य कला को धूल में मिला दिया गया। भाजपा ने ऐसा कभी नहीं सोचा था। आन्दोलन रोक दिया गया।
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अनगिनत घटनाऒं का प्राश्चित
बाबरी ढांचे को तो ढहना ही था, लेकिन उसे जिस तरह से ढहाया गया वह कोई राष्ट्रीय गर्व का विषय नहीं हो सकता है। यह सिर्फ और सिर्फ एक कायरतापूर्ण घटना ही कही जाएगी। लेकिन इसके लिए सिर्फ भाजपा को दोष क्यों देना। क्या इस आन्दोलन को समाज के हर तबके का भरपूर समर्थन नहीं मिला था। क्या वह एक उन्माद का दौर नहीं था, जिसमे देश की अधिकांश आबादी शामिल थीक्या ढांचे के गिरने के अगले दिन हमने अपनी छतों पर घंटा और घड़ियाल नहीं बजाए थे। तो सिर्फ भाजपा को दोष क्यों देना। अगर कोई अपराध हुआ था तो वह सामूहिक था। जब कोई व्यक्ति अपराध करता है तो उसे सजा मिलती है, लेकिन अगर अपराध में पूरा समाज शामिल हो तो समाज को तो सूली पर चढ़ा नहीं सकते हैं। तब प्राश्चित करना पड़ता है। और सिर्फ इस एक घटना के लिए ही प्राश्चित नहीं करना है। १५२८ में जब बाबरी मस्जिद का बलात निर्माण हुआ था तब से लेकर अब तक अनगिनत घटनाऒं के लिए प्राश्चित करना है। और हां, सबसे बड़ा प्राश्चित करना है भारत विभाजन के अपराध के लिए।
जब आन्दोलन से उग्र और गलत रूप धारण करना शुरू किया तो भाजपा ने इसकी रफ्तार को रोक दिया। गांधी जी ने भी ऐसा किया था। जब चौरी-चौरा जैसी घटना हुई और आन्दोलन उग्र होने लगा तो गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन को ही समाप्त कर दिया। पिछले अनुभवों से भाजपा से काफी कुछ सीखा था। उसकी उम्र और राष्ट्रीय राजनीति में हैसियत भी बढ़ रही थी और जिम्मेदारियां भी। इस बीच भारतीय समाज भी तेजी से बदल रहा था और उसकी प्राथमिकताएं भी। उदारीकरण के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्थाऒं के साथ देश का एकीकरणा बढ़ा था और आकांक्षाएं भी। भाजपा ने इसे समझ और अपने मूल स्वरूप को न बदलते हुए अपनी प्राथमिकताऒं में बदलाव किया। ये हममें से सभी के साथ होता है। समय के साथ मिले अनुभवों से हमारा नजरिया भी बदलता है। हम राम को भूले नहीं हैं, बल्कि अब हम राम के वास्तविक स्वरूप और उनके आदर्शों के ज्यादा करीब हैं। राम को पाने के लिए राम राज्य लाना होगा। और राम राज्य वह स्थिति है जहां शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पीते थे। अब शेर कौन है और बकरी कौन ये आप तय कीजिये। क्या दोनों एक ही घाट पर पानी पी सकेंगे?
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राम नवमी की शुभकामनाऒं सहित
अमित पाण्डेय