भाजपा का राजः राम राज्य

वैश्विक अर्थव्यवस्था और विश्वव्यापी आतंकवाद के इस दौर में पूरा देश भाजपा की ऒर बड़ी उत्सुकता के साथ देख रहा है। भाजपा आदर्श समाज व्यवस्था के लिए राम राज्य की अवधारणा पर जोर देती है। अब सवाल यह है कि आखिर राम राज्य की अवधारणा है क्या और हजारों वर्ष पुरानी शासन व्यवस्था की आज प्रासंगिकता कितनी है? पहले आज की परिस्थितियों पर विचार करते हैं।
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बीते दिनों हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के बाद आतंकवाद देश की सुख-शांति और आर्थिक विकास के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है। मानव विकास सूचकांक में भारत लगातार फिसड्डी बना हुआ है। महिलाओं और पिछड़े तबकों को समाज में बराबरी का स्थान नहीं मिला है। शासन तंत्र भ्रष्ट है और समेकित विकास सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।

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राम को भी कुछ ऐसी ही परिस्थितियां विरासत में मिली थीं। रावण द्वारा प्रायोजित आतंकवाद विंध्य की पर्वतमालाओं को पार कर आर्यावर्त तक पहुंच गया था। राक्षसों के आतंक का वर्णन करते हुए तुलसीदास जी कहते हैं-

जेहि-जेहि देश धेनु द्विज पावहि। नगर गाउं पुर आगि लगावहि॥

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राक्षस गाय और विद्वानों को अपना निशाना बना रहे थे। गाय उस दौर में अर्थव्यवस्था का आधार थी। जाहिर तौर पर सुदूर लंका में बैठा रावण भारत को आर्थिक रूप से पंगु कर देना चाहता था। ठीक उसी तरह जैसे इस समय आतंकवादी आर्थिक केंद्रों और प्रमुख बाजारों को अपना निशाना बना रहे हैं। परिस्थितियों का पता चलने पर राम ने प्रण किया 'निसिचर हीन करहुं जग माहि।' राम ने ताड़का, खर, दूषण, सूर्पनखा और सुबाहु, द्वारा तैयार आतंक की छावनियाऒं को नष्ट करने के साथ ही आतंक की जड़ रावण को भी जड़ से उखाड़ फेंकने का प्रण किया। राम कहते हैं कि-
'इससे पहले कि शत्रु हमारे घर में घुसने का साहस करे, हमें उसके घर में घुसकर उसका नाश कर देना चाहिए।' अभ्युदय-1

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कुछ ऐसी ही नीति अमेरिका की भी है। बीते वर्षों के दौरान अफगानिस्तान और इराक इस बात के उदाहरण बने हैं। लेकिन राम की नीति साम्राज्यवादी नहीं है। किष्किंधा में वह तुरंत सुग्रीव को शासन सौंप देते हैं और लंका में विभीषण को।
'राजु दीन्ह सुग्रीव कह। अंगद कहं जुबराज॥'
'सोई संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्हि रघुनाथ॥'


लक्ष्मण द्वारा लंका के वैभव से प्रभावित होकर वहां रुकने की इच्छा जताने पर राम कहते हैं-
अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते।जननि जन्मभूमिश्च, स्वर्गादपि गरियसी॥ :वाल्मीकि रामायण:
लक्ष्मण मुझे सोने की लंका भी प्रिय नहीं लगती है। मातभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।
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राम के इस कथन में प्रतिभा पलायन और पश्चिमी देशों के प्रति अनावश्यक लगाव जैसी समस्याओं के समाधान तलाशे जा सकते हैं। लंका विजय के बाद विभीषण चाहते हैं कि राम यहीं रुक जाएं तो राम उनसे कहते हैं-
'सहायक होकर आई कोई भी बाहरी सेना, विजय की घड़ी के बाद ठहरी तो आधिपत्य सेना का रूप धारण कर लेती है। तुम वानर सेना का पक्ष लोगे तो विदेशी सेना के पिठठू कहलाओगे और लंकावासियों की दष्टि में असम्मान के भाजक बनोगे।' अभ्युदय-2
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राम महिलाओं को सशक्त बनाने पर जोर देते हैं। राम ने विकृत समाज व्यवस्था की शिकार अहिल्या को निर्दोष घोषित किया। उन्होंने दलित महिला शबरी को योगियों से भी श्रेष्ठ बताया और उसके जूठे बेर खाए। निषाद राज केवट उनके मित्र हैं। उनके ध्येय प्राप्ति में रीछ और वानर सहायक बनते हैं, जो वास्तव में अनुसूचित जाति और जनजातियों के ही प्रतीकात्मक रूप हैं। राम की सेना में एक भी वानर सैनिक ऐसा नहीं है जिससे राम व्यक्तिगत तौर पर हालचाल न पूछते हों।
'अस कपि एक न सेना माही। राम कुसल जेहि पूछी नाहीं॥'
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राम आम लोगों के आर्थिक स्थिति को लेकर विशेष रूप से सजग थे। शासन ने गौवंश के विकास पर खास ध्यान दिया। 'ससि संपन्न सदा रह धरनी।' खेतों में एक साल के भीतर कई फसलें उगाई जाती थीं। राम ने खनिज संपदा की खोज के लिए भी विशेष तौर से ध्यान दिया।
'प्रगटी गिरिन्ह बिबिधि मनि खानी।'सागर निज मरजादां रहहीं। डारहिं रत्न तटन्हि नर लहहीं॥

इन प्रयासों के चलते थोड़े ही समय में पर्वतों और समुद्र की गहराइयों से कई तरह के दुर्लभ खनिज और रत्न इतनी आसानी से मिलने लगे कि लगता था जैसे सागर उन्हें खुद ही तट पर डाल देता हो और लोग उठा लेते हैं-कृषि और खनिज क्षेत्र के विकास से वाणिज्यिक गतिविधियों का तेजी से विकास हुआ।
'बाजार रूचिर न बनई बरनत बस्तु बिनु गथ पाइए।
जहं भूप रमानिवास तहं की संपदा किमि गाइए॥
बैठे बजाज सराफ बनिक अनेक मनहूं कुबेर ते।
सब सुखी सब सच्चरित सुंदर नारि नर सिसु जरठ ते॥ '
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बाजार में वस्तुएं बिना किसी मूल्य के मिलती हैं। यानि, कीमतें इतनी कम हैं कि मूल्य का पता ही नहीं चलता है। इस दौरान कपड़े (बजाज), विनिमय (सराफ) और वाणिज्यि (बनिक) कारोबार तेजी से बढा। स्त्री, पुरूष, बच्चे और बूढ़े सभी सुखी और सदाचारी थे। मानव विकास सूचकांकों पर भी राज राज्य पूरी तरह से खरा उतरता है।
अल्पमत्यु नहि कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरूज शरीरा॥
नहि दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहि कोउ अबुध न लच्छनहीना॥
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राम राज्य में किसी की भी अल्प मत्यु नहीं होती थी, सभी स्वस्थ थे। न तो कोई दुखी था और न ही निर्धन। सभी शिक्षित थे। राम राज्य में पर्यावरण और वन्य जीवों के संरक्षण और संसाधनों का संयमित दोहन करने पर खासा जोर दिया जाता था। गायें मनचाहा दूध देती थीं और सहअस्तित्व की भावना इतनी प्रबल थी कि शेर और हाथी एक साथ रहते थे।
'लता बिटप मागें मधु चवहीं। मनभावतो धेनु पय स्रवहीं॥''
फूलहि फरहिं सदा तरू कानन। रहहि एक संग गज पंचानन॥'
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समाज में उंच-नीच का भेद नहीं था और चारों वर्ण के लोग राजघाट पर एक साथ स्नान करते थे। 'राजघाट सबु विधि सुंदरवर। मज्जहिं तहां बरन चारिउ नर।' इस कारण राम राज्य में कोई दुखी नहीं था। कोई शत्रु नहीं था और न ही कोई अपराध करता था।
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आशय यह है कि अगर सरकार के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति योग्य ईमानदार और दृढ़निश्चयी है तो उस देश में सुख संपदा आनी ही आनी है। एक बात और आपका वोट कीमती है। इसकी कीमत पहचानिए क्योंकि इसके जरिए इस बात का निर्णय होता है कि सरकार के शीर्ष पर कौन बैठेगा।
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सीताराम
राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं
अमित पाण्डेय