आडवाणी जी से बड़ी है आस


प्रत्येक भारतवासी आडवाणी जी पर भरोसा करता है। अटल जी भी करते थे। ठीक वैसे जैसे राम जी लक्ष्मण और हनुमान पर करते थे। मेरा मानना है कि अटल जी के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि उन्हें आडवाणी जी जैसा साथी मिला। राजनीति में ऐसे लोग नहीं मिलते हैं। लालू प्रसाद के पास एक ऐसा भरोसे लायक व्यक्ति नहीं था जिसे कि वह मुख्यमंत्री बना देते। अपनी पत्नी को राजनीति में लाना पड़ा। कुछ-कुछ ऐसे ही हालात में सोनिया गांधी को एक गैर राजनीतिक व्यक्ति को देश का प्रधानमंत्री बनाना पड़ा। लेकिन आडवाणी जी पर पूरा देश भरोसा करता है। और यह कोई ऐसा-वैसा भरोसा नहीं है। अटल भरोसा है। जाहिर तौर पर ऐसे भरोसे से कुछ उम्मीदें भी जगती हैं। आइए देखते हैं कि इस भरोसे की वजह क्या है और आडवाणी जी से कौन-कौन सी उम्मीदें हैं-

आम आदमी की आकांक्षाऒं के प्रतीकः आडवाणी जी आम आदमी की आकांक्षाऒं के प्रतीक हैं। हमारी आपकी तरह ही वह भीड़ में खुद को अजबनी महसूस करते थे और भीड़ में भाषण देते समय होने वाली हिचकिचाहट उनमें भी थी। लेकिन आडवाणी जी बड़े दृढ़निश्चयी व्यक्ति हैं। देश और समाज की जरूरतों के अनुरूप हमेशा खुद को ढ़ाल लिया और एकांत प्रिय व्यक्ति से कोटि-कोटि भारतीयों की आकांक्षाऒं के प्रतीक बन गए।

जमीन से जुड़ाव और संघर्षः आडवाणी जी ने एक साधारण कार्यकर्ता के रूप में लंबे समय तक काम किया है। वे आज भी खुद को पार्टी का साधारण कार्यकर्ता ही मानते हैं। पार्टी का साधारण कार्यकर्ता होने से बढ़कर गर्व की बात कुछ और है ही नहीं। राजस्थान से शुरूआत की, बैठक में शामिल होने के लिए ४० किलोमीटर पैदल चले, रहने का ठिकाना नहीं और भोजन ऊपर वाले की मर्जी पर था, जब मिल जाए। बस कुछ मंत्र थे उनके पास जो उन्हें ताकत देते थे- मेरा यह शरीर राष्ट्र के लिए है, यह शरीर मेरा नहीं है। तेरा वैभव सदा रहे मां, हम दिन चार रहें न रहें। और हां। इस राष्ट्र को परम वैभव के शिखर तक ले जाना है।

आडवाणी जी और वंशवादः आडवाणी जी की सबसे बड़ी ताकत उनका अपना परिवार है। पत्नी कमला जी, पुत्री प्रतिभा, पुत्र जयंत और पुत्रवधू गीतिका। प्रतिभा आडवाणी जी की दोस्त भी हैं और भरोसेमंद सहयोगी भी, लेकिन वह आडवाणी जी की राजनीतिक विरासत की उत्तराधिकारी नहीं हैं। जयंत भी नहीं हैं। आडवाणी जी को गर्व है कि उनके दोनों बच्चों ने राजनीति से इतर कोई पेशा अपनाया। आज जबकि वंशवाद की विषबेल हर राजनीतिक दल में फैल चुकी है तो ऐसे में आडवाणी जी का जीवन एक आदर्श है। एक राष्ट्रीय दल की राजमाता और उसके युवराज सुन रहे हैं न...

पद की चाहत से कोसो दूरः आज कुछ लोग कह देते हैं कि आडवाणी जी प्रधानमंत्री बनने के लिए लालायित हैं। लेकिन जिसने उनके जीवन के कुछ पन्ने भी पलटे हैं, वह पूरे विश्वास के साथ कह सकता है कि आडवाणी जी को कभी पद की लालसा रही ही नहीं है। उन्होंने दीन दयाल जी से राजनीति का ककहरा सीखा है। पहली बार पार्टी का अध्यक्ष बनते समय उन्होंने काफी हिचकिचाहट दिखाई थी। अटल जी के साथ हमेशा अपनी नंबर दो की भूमिका से संतुष्ट रहे। १९९६ में हवाला में नाम आया तो तत्काल पद से इस्तीफा दे दिया। आज जब देश के सामने बेहद चुनौतीपूर्ण हालात हैं तो आडवाणी जी नवनिर्माण आन्दोलन की अगुवाई के लिए तैयार हैं और एनडीए की ऒर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं।

सिर्फ हिंदू नहीं सबके हित की बातः आडवाणी जी एक राष्ट्रवादी नेता हैं। वह सिर्फ हिंदू हितों की बात नहीं करते हैं। उनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि है। और राष्ट्र में तो हिंदू भी हैं, मुसलमान, सिख और ईसाई भी। हां, वह प्रखर राष्टवाद के कुछ प्रतीक चिन्ह गौ, गंगा और गायत्री में तलाशते हैं। अयोध्या आदोलन भी राष्ट्रीय अस्मिता को तलाशने की कवायद का ही एक हिस्सा था। हालांकि आडवाणी जी को हमेशा इस बात का मलाल रहा है कि कैसे कुछ स्वार्थी लोगों ने पूरे राम मंदिर आंदोलन को एक धर्म विशेष के खिलाफ षडयंत्र का रंग दे दिया।